November 8, 2012

Navratri story in Hindi


देवी दुर्गा - शक्ति का अवतार


हिंदू मान्यतानुसार देवी दुर्गा को शक्ति का अवतार माना जाता है। दुर्गा जी हिन्दू धर्म की देवी हैं। इन्हें आदिशक्ति के नाम से भी जाना जाता है। इनके नौ अन्य रूप है जिनकी पूजा नवरात्रों में की जाती है। माना जाता है कि राक्षसों का संहार करने के लिए देवी पार्वती ने दुर्गा का रूप धारण किया था। दुर्गा जी को तंत्र-मंत्र की साधना करने वाले साधक आदि शक्ति और परमदेवी मानते हैं। दुर्गा जी के विषय में हिन्दू धर्म में कई कथाओं का वर्णन है.

हिन्दू धर्मानुसार असुरों के अत्याचार से दुखी होकर देवताओं ने जगज्जननी देवी पार्वती का आवाहन किया। देवताओं की पुकार पर देवी प्रकट हुईं तथा उन्हें दैत्यों के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने की बात कही। तब अपने भक्तों की रक्षा के लिए दुर्गा का रूप धारण किया और राक्षसों का अंत कर दिया। तब से ही दुर्गा को युद्ध की देवी के रूप में जाना जाने लगा।




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Goddess Durga emergence

दुर्गा जी, देवी पार्वती का ही रूप है इसलिए इनका भी निवास स्थान कैलाश है। इनका वाहन शेर है। इनके आठ हाथ हैं। इनके एक तरफ के तीन हाथों में तलवार, चक्र और गदा है तथा दूसरी तरफ के तीन हाथों में कमल त्रिशूल और धनुष है। इनके अन्य एक हाथ में शंख और एक हाथ वर मुद्रा में हैं।
राम जी ने भी रखा था नवरात्र व्रत

मान्यता है कि शारदीय नवरात्र में महाशक्ति की पूजा कर श्रीराम ने अपनी खोई हुई शक्ति पाई। इसलिए इस समय आदिशक्ति की आराधना पर विशेष बल दिया गया है। मार्कंडेय पुराण के अनुसार, 'दुर्गा सप्तशती' में स्वयं भगवती ने इस समय शक्ति-पूजा को महापूजा बताया है।
किष्किंधा में चिंतित श्रीराम

रावण ने सीता का हरण कर लिया, जिससे श्रीराम दुखी और चिंतित थे। किष्किंधा पर्वत पर वे लक्ष्मण के साथ रावण को पराजित करने की योजना बना रहे थे। उनकी सहायता के लिए उसी समय देवर्षि नारद वहां पहुंचे। श्रीराम को दुखी देखकर देवर्षि बोले, 'राघव! आप साधारण लोगों की भांति दुखी क्यों हैं? दुष्ट रावण ने सीता का अपहरण कर लिया है, क्योंकि वह अपने सिर पर मंडराती हुई मृत्यु के प्रति अनजान है।
महाशक्ति का परिचय

नारद ने संपूर्ण सृष्टि का संचालन करने वाली उस महाशक्ति का परिचय राम को देते हुए बताया कि वे सभी जगह विराजमान रहती हैं। उनकी कृपा से ही समस्त कामनाएं पूर्ण होती है। आराधना किए जाने पर भक्तों के दुखों को दूर करना उनका स्वाभाविक गुण है। त्रिदेव-ब्रह्मा, विष्णु, महेश उनकी दी गई शक्ति से सृष्टि का निर्माण, पालन और संहार करते है।
नवरात्र पूजा का विधान

देवर्षि नारद ने राम को नवरात्र पूजा की विधि बताई कि समतल भूमि पर एक सिंहासन रखकर उस पर भगवती जगदंबा को विराजमान कर दें। नौ दिनों तक उपवास रखते हुए उनकी आराधना करें। पूजा विधिपूर्वक होनी चाहिए। आप के इस अनुष्ठान का मैं आचार्य बनूंगा। राम ने नारद के निर्देश पर एक उत्तम सिंहासन बनवाया और उस पर कल्याणमयी भगवती जगदंबा की मूर्ति विराजमान की। श्रीराम ने नौ दिनों तक उपवास करते हुए देवी-पूजा के सभी नियमों का पालन भी किया।


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Maa Durga

जगदंबा का वरदान


मान्यता है कि आश्विन मास के शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि की आधी रात में श्रीराम और लक्ष्मण के समक्ष भगवती महाशक्ति प्रकट हो गई। देवी उस समय सिंह पर बैठी हुई थीं। भगवती ने प्रसन्न-मुद्रा में कहा- 'श्रीराम! मैं आपके व्रत से संतुष्ट हूं।

जो आपके मन में है, वह मुझसे मांग लें। सभी जानते हैं कि रावण-वध के लिए ही आपने पृथ्वी पर मनुष्य के रूप में अवतार लिया है। आप भगवान विष्णु के अंश से प्रकट हुए हैं और लक्ष्मण शेषनाग के अवतार हैं। सभी वानर देवताओं के ही अंश हैं, जो युद्ध में आपके सहायक होंगे। इन सबमें मेरी शक्ति निहित है। आप अवश्य रावण का वध कर सकेंगे। अवतार का प्रयोजन पूर्ण हो जाने के बाद आप अपने परमधाम चले जाएंगे। इस प्रकार श्रीराम के शारदीय नवरात्र-व्रत से प्रसन्न भगवती उन्हे मनोवांछित वर देकर अंतर्धान हो गई। 


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Rama and Ravana - The Ramayana




































November 7, 2012

Sati Devi story in hindi

शक्तिपीठ - माता की कथा


आदि सतयुग के राजा दक्ष की पुत्री पार्वती माता को शक्ति कहा जाता है। यह शक्ति शब्द बिगड़कर 'सती' हो गया। पार्वती नाम इसलिए पड़ा की वह पर्वतराज अर्थात् पर्वतों के राजा की पुत्र थी। राजकुमारी थी। लेकिन वह भस्म रमाने वाले योगी शिव के प्रेम में पड़ गई। शिव के कारण ही उनका नाम शक्ति हो गया। पिता की ‍अनिच्छा से उन्होंने हिमालय के इलाके में ही रहने वाले योगी शिव से विवाह कर लिया।

एक यज्ञ में जब दक्ष ने पार्वती (शक्ति) और शिव को न्यौता नहीं दिया, फिर भी पार्वती शिव के मना करने के बावजूद अपने पिता के यज्ञ में पहुंच गई, लेकिन दक्ष ने शिव के विषय में सती के सामने ही अपमानजनक बातें कही। पार्वती को यह सब बरदाश्त नहीं हुआ और वहीं यज्ञ कुंड में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए।

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Sati and Shiva


यह खबर सुनते ही शिव ने अपने सेनापति वीरभद्र को भेजा, जिसने दक्ष का सिर काट दिया। इसके बाद दुखी होकर सती के शरीर को अपने सिर पर धारण कर शिव ‍क्रोधित हो धरती पर घूमते रहे। इस दौरान जहां-जहां सती के शरीर के अंग या आभूषण गिरे वहां बाद में शक्तिपीठ निर्मित किए गए। जहां पर जो अंग या आभूषण गिरा उस शक्तिपीठ का नाम वह हो गया। इसका यह मतलब नहीं कि अनेक माताएं हो गई।

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Shiva and Sati